हर बार जब भारत आतंकवाद पर सर्जिकल स्ट्राइक करता है, जब हमारे सैनिकों का खून सीमा पर बहता है, या जब कश्मीर में कोई बड़ा फैसला लिया जाता है—पाकिस्तान के नेताओं और मीडिया से एक ही आवाज़ आती है: “हम इसका बदला लेंगे!”
लेकिन सवाल ये है — क्या वाकई पाकिस्तान बदला ले सकता है? या ये महज जनता को बहलाने का एक तरीका है?
बदले की बात या दबाव की चाल?
पाकिस्तान अक्सर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खुद को “शांतिप्रिय” दिखाता है, लेकिन उसके बयान और कार्रवाई में फर्क होता है। जब पुलवामा हमला हुआ, भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक से जवाब दिया। पाकिस्तान ने भी जवाबी कार्रवाई की, लेकिन भारत ने साफ दिखा दिया कि अब वो 1965 या 1999 वाला भारत नहीं रहा।
सेना के भरोसे सियासत?
पाकिस्तानी नेताओं का “बदला” शब्द बोलना, एक तरह से अपनी जनता को भावनात्मक रूप से भड़काने की कोशिश होती है। बदले की बात करके वे अपने देश की आंतरिक समस्याओं, महंगाई, गरीबी और राजनीतिक अस्थिरता से लोगों का ध्यान हटाते हैं।
भारत तैयार है
भारत अब शांत नहीं बैठता। हर हमला, हर गोली का जवाब देने की ताकत और हौसला आज हमारे जवानों में है। पाकिस्तान को ये बात समझ लेनी चाहिए कि अब “बदले” की धमकी से कुछ हासिल नहीं होगा। भारत बदले के खेल में नहीं, सुरक्षा के सिद्धांत पर चलता है।
शांति का रास्ता ही भविष्य है
“बदला” एक जज़्बाती शब्द है, लेकिन देशों के रिश्ते गुस्से से नहीं, समझदारी से चलते हैं। अगर पाकिस्तान को वाकई अपने देश का भला चाहिए, तो उसे जंग की नहीं, संवाद की भाषा अपनानी होगी। क्योंकि जंग में जीतने वाला भी हारता है — जान, वक्त और विश्वास।